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Showing posts from September, 2018

कबीर बीजक जीव धन को बताता है

कबीर बीजक जीव धन को बताता है कबीर 'बीजक' जीव धन को बताता है  पांच तत्व के भीतरे गुप्त वस्तु स्थान , बिरला मरण  कोई पाइये गुरु के शब्द प्रमाण।  जीव (पांच तत्व के पुतले )के अंदर जो चैतन्य साक्षी है , वही संस्कारों का धारक है। माया और मन का बोध कराता है बीजक। जो अंदर है उसे हम बाहर खोजते हैं। आत्मा राम  सत्ता है। सारा प्रतीत परिवर्तनशील है। आत्मा राम सत्ता  यथार्थ है। मन मायाकृत  साक्ष्य है ,मिथ्या है। जीवन की सार्थकता है 'स्व :' और  'पर ' का बोध।  'स्व : ' तत्व सनातन है। सत्य सदैव सत्य रहता है ,'पर' एक प्रतीति है परिवर्तनशील है।  अंतर् ज्योत गुणवाचक है।  "अंतर् ज्योत शब्द एक नारी ,ताते हुए हरि ब्रह्मा त्रिपुरारी। " नारी शब्द का अर्थ यहां कल्पना शक्ति है।  अन्तर -ज्योत से ही सारे ज्ञान का विकास हुआ है। जीव  के अंदर एक शाश्वत तत्व  है वह अंतर्ज्योति है।  कबीर सृष्टि का  आरम्भ नहीं मानते हैं।  कबीर के यहां 'ब्रह्म' पहले अग्नि  को कहा गया। जो बढ़े (अग्नि की तरह )वह ब्रह्म है।  'रज' से सृष्टि होती है 'सत'

मोकू कहाँ ढूंढें रे बन दे ,मैं तो तेरे पास में

मोकू  कहाँ ढूंढें रे बन दे ,मैं तो तेरे पास में                           (१ ) न तीरथ में न मूरत में न एकांत निवास में , न मन्दिर में न मस्जिद में ,न काबे कैलास में।  मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।                            (२ ) न मैं जप में न मैं तप में ,न मैं बरत उपास में , न मैं किरिया  -करम में रहता ,न मैं जोग संन्यास में।  मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।                           (३ ) न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में , न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में।  न मैं परबत के गुफा में ,न ही साँसों के सांस में।  मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।                          (४ )  खोजो तो तुरत मिल जावूँ एक पल की तलाश में ,  कह त कबीर सुनो भई   साधौ   मैं तो हूँ बिस्वास में।  आदि श्री गुरुग्रंथ साहब जी से कबीर जिउ सलोक (१९७ -२०० ) कबीर हज काबे हउ जाइ था आगै मिलिया खुदाइ।  साईँ मुझ सिउ लरि परिआ तुझै किंहीं फुरमाई गाइ।  कबीर हज काबे होइ होइ गइआ केती बार कबीर।   साईँ मुझ महि किआ खता मुखहु न बोलै पीर।  क

अनकही :कांग्रेस की लाज अब भोले के हाथ

कांग्रेस की लाज अब भोले के हाथ  इसे भोले बाबा का चमत्कार ही कहा जाएगा युवराज को भोले  के परिसर में ईर्ष्या कहीं भी दिखलाई नहीं दी। इसका मतलब साफ़ है ईर्ष्या मोदी की संसद में ही थी। यदि शहजादे के अंदर होती तो वहां भी दिखलाई देती।  उनका शायद ख्याल था ईर्ष्या  वहां  भी हो लेकिन उनका अब ये मत पुख्ता हो चुका है ईर्ष्या  सिर्फ और सिर्फ मोदी की संसद में है भोले की संसद में नहीं है।  जो हो यदि उनका मन निर्मल हुआ है भांडा साफ़ हुआ  है अंदर से तो यह अच्छा ही है। मालूम हो घृणा एक प्रकार का विष होता है और भोले तो जन्मजात विषपाई हैं विषपान करते हैं इसीलिए नीलकंठ कहलाते हैं।  लेकिन इस सबसे सुरजेवाला बहुत निराश हैं अलबत्ता उनके अलावा भी कई और उनके चिरकुट लगातार उन्हें सन्देश प्रसारित कर रहें हैं वहां जफ्फी मत पाना किसी की।  वहां सब का मन निरंजन है उज्जवल है शांत और भक्ति भाव से प्रशांत हैं। अब अगर शहजादे साहब स्वेत वस्त्रों के  अंदर अधोवस्त्र भी कहीं लाल पहने होते तो सुरजेवाला अब तक उन्हें हनुमान भक्त घोषित करवा देते आखिर हनुमान भी तो शिवजी के ही अवतार हैं।  पहली सीढ़ी चढ़ गए हैं राहुल बाबा।